मदहोशी का बवंडर

कुदरत
मट्टी की खुशबू… फूलों की मेहेक
बुंदों की छमछम... पंछीयों की चेहेक
कुदरत के करिश्मे का अनोखा ये दान
एक से बिखराएँ ताजगी और दूजे से बरसाए तान
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मन
मन का पंछी बड़ा ही चंचल
ना तो उसका कोई भरोसा... ना तो उसका कोई ठिकाना
कभी तो खेले रंगीन सपनों की होली
या फिर नैनोंसे उठाएँ… कभी आसुओं की डोली
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एहसास
सास है एहसास... जिंदगी का
परछाई है एहसास... रोशनी का
लेकिन क्या बायाँन दे हम उस एहसास का... जो नही है मौजूद फिर भी उसकी मौजूदगीका
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बुलंद इरादे
आसमान को छूना… हो तितली का सपना
जुगनू चाहे सारा जहाँ... रोशनी से भरना
सागर से उठती लहर… नाप रही किनारे को
ऐसे बुलंद इरादे हो जिनके… उनका नही कोई जवाब
बस इतनिसी बात है समज लीजिए
इक कली के मन में ही पनपता है.. कल के गुलशन का ख़्वाब
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सूरज और चांदनी
जब बात चली दोस्तों में...
हर किसीने थामना चाहा... सूरज की किरणों का आँचल
मगर हम तो दीवाने है उस चांदनीके... जो करती अंधेरे में डुबे हर कोने को रोशन
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तितली और भँवरा
तितली और भँवरा दोनों फूलों के दीवाने
लेकिन बड़े गज़ब की बात तो देखो... दोनों के अंदाज़ निराले
तितली की ज़िंदगी इंतज़ार में बीते... कभी तो हो फूल रजामंद
और भँवर की तकदीर तो होती... कमल की पंखुडी में बंद
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दुआ
हसरत लिए जाते है लोग…खुदा के दरबार में
कभी खाली ना रहे हाथ मेरे…ए मौला…इस भरे संसार में
मगर इस बंदे की इतनीसी गुजारिश है खुदासे रहे हमेशा मेरे हाथ ये खाली
तभी तो ये उठ पाएँगे हरदम... ए मौला…भरने हमेशा आपकी दुओंसे इस गरिबनावाज़ की झोली
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वक्त की नज़ाकत
वक्त की नज़ाकत को पेहेचान भी ले ए दिल….सम्भल जा
उनसे इजहारे मोहब्बत होने को है
यही हसीन अदा ना बन जाए सबब…हमारी रुसवाई का
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अरमान
आरमानोंने आज लंबी उड़ान भरनेका साहस किया तो है…
पर नादान को कौन समझाए... बवंडरों में कभी नैय्या नही चलायी जाती
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उल्फत
ना वाकिब थे हम उल्फत की बारिकियोंसे
उनसे नज़र बस मिलनि ही थी के पल्कोंने शरमाना और लाबोंने थर्राना सीख भी लिया
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बगावत
आज फिर दिल बगावत पे उतर आया है
लाख समझाया इसे पर एक ना माना है
अपनी तनहाई को सवाँरने के लिए
हमे लौटकर भीड़ का हिस्सा बनाया है
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सपने
सुना है सपनोंने सजाएँ है कई दिलकश हसीन मेले
कोई उनसे केहदो... कमसेकम आज तो ना वो हमारे आसुओंसे खेले
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गम
बड़ा फक्र था हमे... गम की नस नस से वाकिब होने का
हर आघात पे मगर गुमका एक नया पेहलु हमसे रूबरू होता गया
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तनहाई
हमारी तनहाई पे एतराज़ ना जातो, ए दोस्तों
चली जो आ रही है मेरे साथ…कोई साथी नही... हमसाया सा है
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दीवानगी
आजकल हम अपनी दीवानगी से कुछ इस तरह पेश आते है
उनके तस्सवुरसे कई ज़्यादा अब उन्हें भुलाने की कोशिश हमे बहलाती है
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हमदर्दी
ह्यु तो हमदर्दी जताने की होड़ सी लगी है आज लोगों में
दोष उनका नही है…
यह तो मेरी दौलत और शोहोरत का करिश्मा है जो उन्हें यहाँ तक खीच लाया है
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दिल
दिल का शीशेसे भला क्या ताल्लुक
दिल टूट भी जाए बेशक तो उसकी आवाज़ भी ना हो
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दर्द
उधर आप हल्किसी खरोच से भी तिलमिला उठे हो
इधर हम पुरे छलनी हो गए पर जुबासे उफ़ तक ना निकल आयी है

वैसे तो जमानेसे मिले आ रहे दर्द की कोई कमी ना थी…
पर यार से चोट खाएँ... ऐसे दर्दसा एहसास कहाँ
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मौसम
ना जाने इन आंखोंका मौसम कब बदलेगा
एक अरसा बीत गया है रौशनी मेहसूस किए
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बेरूखी
हमने उनसे कुछ माँगा भी ना था… और वो ठुकराकर चल भी दिए
ऐसी अदा को क्या नाम दे… हमे तो उनकी बेरूखी भी नसीब ना हुई
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रचना
बेहतरीन रचानाओं का एक मनभावन सिलसिला…
मानो दिलासा दे रहा हो…
इस आसमानपे कही उभर रहा... एक 'इन्द्रधनुष' और भी है
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खुशनसीब
खुशनसीब है वो…हमसे किनारा करनेका सबब जो जुटा लिया है
वरना एक हम है की उनसे मुलाक़ात करने का एक बहाना भी ना ढ़ुंढ़ सके
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लम्हा
हर लम्हा मेहेक गया...तेरा नाम जो लिया
इन्ही लम्होने हसीन दर्द का एहेसास है दिया

बेहोशीसे दिल ने हरदम आपको पुकारा किया
अब आरजू दीदार-ऐ-यार की कर रहा हर पल जिया
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कुछ कहने को आवाज़ ही काफी नही होती...
अनकही ही पिला दे उन नज़रोंसी साकी नही होती

इजहारे मोहब्बत करने की हिम्मत जुटाने के लिए...
अपनेही दिल से दुश्मनी भी काफी नही होती
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आतिष-ऐ-दोजाख से डरता नहीं हूँ मै....
आब-ऐ-दीदाह में ही जो खाकिस्तर हो जाए उसे खौफ़ कैसा
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अजीब हिज्र जौ मुझे लहक है
माषुक की जुदाई से ही हमें अब मोहब्बत है

सहरा को हमने मसकन बना लिया है
या बहारों की परछाई से भी हमें नफरत है
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कोई पुराना ख्याल बनकर तेरी यादों से गुजर जाते हैं...
एक पल के लिए ही सही इस दिल-फिगार शहर पर फरहत लूताये जाते है
उस शहर का ये मुफलिस मुकीम अब और आरजू करे भी तोह क्या...
राह-गीर की तरह आप हमेशा शब्बा-खैर जो किए जाते है
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पलके भीगी हैं आज, अश्कोंकी बगावत है
एक वो ही जानते है, ये यादों की शरारत है
रुकने की नसीहत ना दो, कहते है वो हमसे
मरीज़ की दवा क्या है, हम खूब पेहेचानते है
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सुना है आज उनकी पाज़ेब कही खो गयी है
परेशान है बहोत, पेशानी पे लकीर निकल आयी है
जाओ कह दे उनसे कोई, हमारी तबीयत कही खो गयी है
परेशान है बहोत, दिल पे लकीरसी निकल आयी है
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मज़ूर बहाने न बना
आज शायद कामियाब हो भी जाओगे
जब होने लगे बे-हिज़ाब
रफूगर तक कहासे लाओगे
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वो मौसम लौटा दो...
जब दिल की सरगोशी वादी में गूंजती थी

वो शब लौटा दो...
जब चाँद की सिसक दिल तक पहुचती थी

ये अब कौनसी फिज़ा है
क्यों इस गुलज़ार में पो रखने के लिए...आज पतझड तक झिझकता है
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सूरज की रोशनी में भी आज कल अंधेरा नज़र आता है
तू कितनीं भी पास क्यों ना हो, ए सनम
तेरे नज़दीकियों में दूरियों का एहेसास होता है

चांदनी की शीतलता में भी आजकल दिल सोखताह हुए जाता है
तू लाख छुपाना चाहे फ़िर भी, ए सनम
तेरी नज़रोंसे अक्सर बेवफाई का जिक्र होता है
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हर साज़ की आवाज़, मेरे दर्द की अलामत है
सदा ये मेरे दिल की तेरी इबादत है
एसी बेरुखीसे ना पेश आओ, जरा करम तो फरमाओ
दिल ना बन जाए बेजुबां यहाँ तक की आह तकना भी मुहाल हो
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पलभर ही मिले और अंधेरे में खो गए....
रुसवाई का सबब देकर हमे बेगाना कर गए
इस बर्क-ए-अदा पे आपकी हम सजदा किए गए
इसे मेरी दीवानगी कहीये बेशक...
आप हमे उस अंधेरे में भी दिखयी दिए
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उनकी आँखों में उदासी का सबब
वो एक बेजुबां आँसू बयाँ करें शायद
कब तक यु सैलाब को रोके रखोगे
यहाँ तो डूबकर ही साहिल नसीब होते है
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हम भी पी लेते हैं कभी कभी
इधर माशूककी नज़रोंसे मिलते जाम क़यामतसे काम नही
बस एक तेरी मै का आसरा लिए, ए मैकशी
हम भी जी लेते हैं कभी कभी
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तुझसे प्यार तो मुझे नहीं है पर
दिल-ए-मजबूर परस्तीष-ए-शे'आर है
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अब आ भी जाओ शिकैब की इंतिहा है
ए'जाज़-ए-मसीहाई वरना ये नज़ा है
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शाम ढल रही थी बेमतलब
सिराज का लौट जन और चाँद का निकलना लाज़मी था
एसे में उफुक पे अब हम किसके नक्श-ऐ-क़दम पाएं
आपसे बढ़कर तो कोई शिहाब नही इस जहाँ में
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ज़िन्दगी तो बेहिसाब लम्होंका कीस्सा है
फुसून-साज़ है, चश्मे ज़दन समां बदल जाएँ
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जो हुआ सो भूल जाओ
वक्त से बड़ी कोई शिफा नही होती
देते हो इनबीसात-ऐ-मस को ग़रीब-उल-वतन का कुला
क्या खूब गम को गम-गुस्सार कर चले हो
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खामोशी गूंजती है दिल के डर-ओ-दीवार में
कभी था ये मब्दा तूफानों का अब है मकाम-ऐ-तीही
चलती जाएँ है रश्क-ऐ-उम्र राज़-ओ-नियाज़-ऐ-तन्हाई
हफ्त-इक्लीम-ऐ-घुलघुला मुहाल नही अगर लौट आए उनके चाप
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धुप से मखमली शामों के साए में
हमने अक्सर आपको दिल के करीब पाया है
वक्तसे तकाजा है, ले वो इस नज़ाकतसे करवट
कभी न एहसास हो शक का और शफक बनी रहे
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इन हाथों की लकीरों में अनकहा कतबा है
दास्ताँ-ऐ-वाहिमा की राजदान हकीकत-ऐ-गोयाई है
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कई सौदे होतें है बिस्मिल, तेरी मकतल-ऐ-महफ़िल में
क्या सोचकर चले थे दर्द-आशना तेरी तलब में

वो आरजू-ऐ-गेस्सु आरजू-ऐ-कातिल है
इस कुर्बत का हासिल अक्सर रहा'इश-ऐ-तनहाई है

अब मौज-जान खारिजोंपर तुम यूह तीमर-दारी ना जताओ
काफिया की तमन्ना रही बाकी,
छाया हुस्न-ऐ-मतलपे शेर अशोब-ऐ-असर है
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किसी गुमनाम शहर में शब होगी
फिरसे हमनशीं तेरी पेंहचान गुरेज़ होगी

बे-नूर मेरे आँचल में अश्कोंके जुगनू चमकेंगे
फिरसे नशेमन पर बर्क मेहरबान होगी

सहर का इंतज़ार कोई मैख्वार करें क्यों
फिरसे मैखाने पर नशा मिन्नत काश होगी
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समुंदर के हर बूंद में मुजस्सम तुम्हे पाया करते है
उन्स हुआ है इस कदर, तुझी में शराबोर हुए जाते है

पायाब में तेरे नक्श-ऐ-क़दम उभर रहे है अभी
कितनी नुजहत है, नीलोफर को भी रश्क हो जाएँ इनसे

रूपहली रेत को अब ज़र्रीन ख्वाब नसीब होते हैं
साहिल को तृष्णा है लहरों की
और आप शबनम में तब्दील हुए जाते है
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फ़िर वो यादें हिफाज़त-ऐ-उन्स मांगे
आरजू-ऐ-जाविदाँ के जाम मांगे

कूचे से तेरे होकर नीम-शब ने जब भी अंगडाई ली है
आपकी कसम आँखोंने हमारी खवाबीदा से दुशमनी की है

तसव्वुर-ऐ-गुल-अफशां मेरा, तेरे खयालोंसे युही मेहका करे हरदम
तेरी उल्फत के शोलोंसे ही ये बीमार-ऐ-दिल तस्कीन पाए
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खामोशी पेहचान लो मेरी
फरयाद-ऐ-निदा सुन भी लो कभी

एक मुददत से तेरे ख़याल के मुरीद है हम
संग-ऐ-दर तबसे होठों पे लिए चलते है हम

है अरमान-ऐ-दफीना मेरी निगाहोंके बवंडर में गम
किलीद मिल जाएँ गर तुम्हे कभी...
शायद वोह एक बेजुबान फ़िर गोषा-नशीं हो
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अकेले में या भीड़ में, दिल बेताब है
भटक रही है बंदिश-ऐ-ज़िंदगी तेरे साज़ की तलाश में
लहन ना सही, काश ये जबीं-ऐ-शिकन ही छेड़ दे कोई
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किसी का दामन हाथ जो आता...छोड देते हम सारा ज़माना
किसी की नज़र से जाम जो पिते...छोड देते हम मैय-खाने का सहारा
किसी की अदा मे आब-ए-हयात जो पाते...छोड देते हम गुल्शन-ए-बहरा
किसी की अश्को मे शब्नम जो पनप्ते...छोड आते हम अपनी अजियत का आसरा

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