चाँद के पास एक बदली थी...

चाँद के पास एक बदली थी...सितारोंकी वो खलिश थी
उस्तुवार उनकी मोहब्बत नादिर-ऐ-रोज़गार थी

लेकिन ना वो चाँद जानता था, बदली भी बेख़बर थी
तकदीर में दोनोंकी वो रात आख़री थी
उमड़कर बरसना ये बदली की किस्मत थी

आज भी चाँद ज़मीन पे, उस माशूक के निशान ढूँढता है
और उसकी हसरत में आज भी हिलाल होता है

कभी...
चाँद के पास एक बदली थी...सितारोंकी जो खलिश थी

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