तुम्हे कभी अपना बना ना सके.....
तुम्हे कभी अपना बना ना सके.....
एक आरजू का किनारा हो ना सके
फिरते रहे हम दामन में लिए मुहोब्बत के शोलोंको
वो एक चिंगारी को मजार दिला ना सके
अदाओंकी रोशनिसे आपकी सवाँरा किए हम अपने खयालोंको
अफ़सोस आपकी रूहको हमसाया बना ना सके
क्योंकर चले थे साथ साथ हम गुमनाम मंजिलकी तलाश में
उस अधूरी दास्ताँ को अबतक अंजाम दिला ना सके
तुम्हे कभी अपना बना ना सके.....
No comments:
Post a Comment