यूँही उनका ख़याल आया...

यूँही उनका ख़याल आया...
खामोशी से गुजरते हुए उस पल पर मानो एक नशासा छाया

कैसे बयान करें हम उन जज़बतोंको
दिल में फिरसे उभर रहे उन तूफनोंको

पिये थे हमने वो जाम उनकी नज़रोंसे
नथा उसका कोई मुकाबला किसी मैखानेसे

हम पे क्या क्या गुज़री थी जब आपने फ़ैसला सुनाया था
एक झूठी शान की खातिर इस दिल को ठुकराया था

एक अरसा है बिता पराया हुए उनका साया
लेकिन आज ना जाने क्यों...
यूँही उनका ख़याल आया...

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