वो मुलाक़ात रूमानी थी...

वो मुलाक़ात रूमानी थी...
चुराए जा रहे थे वो नज़र इस कदर
बेकरारी की हदसे गुजरने की बात थी
वो लाख छुपाना चाहे भी तो क्या होता है
मुहब्बत की खुशबू मिटाने की बात थी
चलो हमने भी खामोशीका सिला खामोशीसे दिया
शमा के लौ में पिघलने की बात थी
अब क्या क्या ना बीत रहा इस बरबाद-ऐ-दिल पर
बस आपही से मिल रहें दुओंकी बात थी

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