अब कहाँ और जायें...

खूबसूरत है आँखें तेरी, जालिम आदाएँ
आलम ये मदहोशी का बड़ा गज़ब ढाएँ

कातिल निगाहें, हाय! बेचैनी बढाएँ
गहरायी में डूबकर इनकी हम जन्नत को पाएँ

शिकायत नही शिकस्त है इनसे
नज़रे मिलाकर जब वो पलके झुकाएँ

भला छोड़कर इनका दामन
अब कहाँ और जायें...
अब कहाँ और जायें...

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