यूँ ज़िन्दगी में तनहा हैं हम.....

यूँ ज़िन्दगी में तनहा हैं हम.....
सोज़-ऐ-गम जिसका साथ निभाये वो मुसाफिर है हम

इस तरह ज़िन्दगी ढली आइने में...
अब सिर्फ़ अपने ही अक्स के मुखातिब है हम

गुजरता है कारवाँ मायूसी की गलिसे
आज अपनी ही हस्ती के कातिल है हम

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