फिर तुम याद आएँ...
फिर तुम याद आएँ...और...थोड़े पलों के लिए ही सही
सूनसान ज़िंदगी में मेरी आप गुलदुम की चेहेक बनकर छाएँ
अब हो जाओ तुम मेरी तस्सवुर से ओझल...ताकी हम दोहरा सके...
फिर तुम याद आएँ...और...
इतना करीब तो हम तुम्हे रूबरू भी ना पाएँ
फिर तुम याद आएँ...और...थोड़े पलों के लिए ही सही
सूनसान ज़िंदगी में मेरी आप गुलदुम की चेहेक बनकर छाएँ
अब हो जाओ तुम मेरी तस्सवुर से ओझल...ताकी हम दोहरा सके...
फिर तुम याद आएँ...और...
इतना करीब तो हम तुम्हे रूबरू भी ना पाएँ
Labels: शेर-O-शायरी
No comments:
Post a Comment