तमन्ना है फ़िर से मुलाकात हो...
तमन्ना है फ़िर से मुलाकात हो...
नज़रों की गुफ्तगू से दुबारा पेहचान हो
फिरसे दिल की अदालत में...ओ मेरे कातिल
हम आपकी आरजू के गिरिफ्तार हो
अगर लौट जाओ भी तो कुछ घूम नही
एक यही सिरा उस इंतज़ार की इब्तिदा हो
तमन्ना है फ़िर से मुलाकात हो...
नज़रों की गुफ्तगू से दुबारा पेहचान हो
फिरसे दिल की अदालत में...ओ मेरे कातिल
हम आपकी आरजू के गिरिफ्तार हो
अगर लौट जाओ भी तो कुछ घूम नही
एक यही सिरा उस इंतज़ार की इब्तिदा हो
Labels: शेर-O-शायरी
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